समाचार
पुनरागमन है…
ये तो पुनरागमन है मेरे बचपन का
बच्चे ही सही
पकड़ हाथ चलाते हैं मुझे
रोटी ना सही
दवाई कह कहकर खिलाते हैं मुझे
कभी-कभी मचल जाता हूँ
खो भी जाता आपा
इसे क्यूँ कहते हो बुढ़ापा
ये तो पुनरागमन है मेरे बचपन का ।
सिर में छितरे छितरे बाल
मुँह पोपला सा
लगता दूध के दाँत आने वाले
हर पल मेरा ध्यान रखते घरवाले
क्यूँ कहते बुढ़ापा जमाने वाले
ये सवाल पाँच का है या पचपन का
ये तो पुनरागमन है मेरे बचपन का ।
मन करता बाहर जाऊं
टहलूं दगड़े में मित्रों में समय बिताऊं
पर अब भी टोका टोकी बीच
कई बंदिशे रहती हैं
घर की हर जिह्वा मुझसे कहती है
नहाना धोना बुरा लगता तन का
क्यूँ कहते हो बुढ़ापा इसे
ये तो पुनरागमन है मेरे बचपन का ।
जिंदगी … (गीत)
जिंदगी रंग बदले प्रतिपल
जो कल था वो आज नहीं
नहीं रहेगा कल…
कभी दीप बन बने दिवाली
उजियारा फैलाएं
तन का कोना-कोना दमके
अंधकार भगाएं
ये स्वरूप मचा दे मन के
कण कण में हलचल ।
शुक्लपक्ष सी लगे धवल
कभी कृष्णपक्ष बन जाएं
सुख दु:ख दोनों पाटों के बिच
खुद को जो अजमाये
ये अबूझ पहेली इसका
नहीं कोई भी हल ।।
बाल स्वरूप किशोरावस्था
देख युवानी इसकी
प्रोढ़ता में व्यस्त रहे जो
बुढ़ापा कहे कहानी इसकी
इन सबमें कहीं सुगम सी
कभी दिखती दल दल ।।
जिंदगी रंग बदले प्रतिपल।।
व्यग्र पाण्डे (कवि/लेखक)
गंगापुर सिटी (राज.) 322201(भारत)