आ खिड़की पर बैठ भी जा
छोटी प्यारी गौरैया
झूम-झूम आंगन में नाचो
मेरी प्यारी गौरैया ।
तेरी चूं-चूं तेरी चीं-चीं
मन को प्रतिपल हर्षाती है
तेरा सच्चा प्यार अनोखा
तू हर घर को भाती है ।
कहाँ बसी किस देश बसी तुम
अब तू क्यों कम आती है
किसने तेरा दिल तोड़ा है
फटती हम सबकी छाती है ।
धीमे-धीमे तेरा गुम होना
प्रकृति को सूना करता है
ऐसा क्या विज्ञान जो तुझको
प्रतिपल छीना करता है ।
दुःखी हमारा मन है काफी
क्या बोलूँ किसको बोलूँ
विज्ञान ! तू पैदा कर गोरैया
तब ही मैं तेरी जय बोलूँ ।
अनिल कुमार मिश्र
रांची, झारखंड, भारत