चोट खा कर गुनगुनाते रहे ।
घाव दिल का छुपाते रहे ।
वो मिले भी नहीं क्या कहे,
अपना उन्हें हम बनाते रहे ।
रोज शिकवा गिला क्या करें,
हर ज़ख्म हम छिपाते रहे ।
लौटकर वो कभी आए नहीं,
फिर भी उन्हें बुलाते रहे ।
याद में रात-दिन कैसे कटी,
सोचकर हम मुस्कुराते रहे ।
अनीता सिद्धि, पटना, बिहार, भारत