• २०८२ आश्विन ७, मंगलवार

स्वच्छंद विचरण

पद्मा राजेन्द्र

पद्मा राजेन्द्र

तुम्हारा घर बहुत छोटा है
मेरे मन का पिंजरा बड़ा है
जहाँ मेरे विचारों का वितान
अपना आकाश ढूँढ लेता है
उन विचारों के साथ में
विचरण करती हूँ

उड़ती हूँ, ठहरती हूँ, थमती हूँ
तलाशती हूँ अपना एक तारों
भरा आसमान
उन तारों के बीच खोजती हूँ
कुछ अपने, कुछ सपने
कुछ उम्मीदें, कुछ यादें, कुछ वादें
पर पांव जमीं पर मजबूती से जमाएँ
मन में आस लगाए
अपने बड़े से पिंजरे
से ढूँढती हूँ मैं अपना आकाश


पद्मा राजेन्द्र, अध्यक्ष- वामा साहित्यमंच
इंदौर, मध्यप्रदेश, भारत