• २०८१ माघ १० बिहीबार

वक़्त

रूपसिंह भण्डारी

रूपसिंह भण्डारी

वक़्त चुप हैं
और हम हैं चुपचाप
हिमालय की सुनसांन जैसी क्यों
सन्नाटे ओढ़के
सो रहे हैं लोग !
बाते ख़तम हो रही हैं ! शब्दों बेहोस हो गए होंगे
नहीं तो लोग क्यों इमोजीकी
जरिया से बाते करते हैं !
सब किस ने चुरा लिया
सम्बेदना, संबंध और सासें
कहा खो गए हम
हसी भी केवल फ़ोटो में हैं
जीवन और चुपचाप हैं

वाकई लोग भर्चुअल बन गए तो नहीं
नहीं तो लोग क्यों
छुपे बैठे हैं  !


रूपसिंह भण्डारी