• २०८१ श्रावाण ११ शुक्रबार

साजन आए, सावन आया

हरिवंशराय बच्चन

हरिवंशराय बच्चन

अब दिन बदले, घड़ियाँ बदलीं,
साजन आए, सावन आया ।

धरती की जलती साँसों ने
मेरी साँसों में ताप भरा,
सरसी की छाती दरकी तो
कर घाव गई मुझ पर गहरा,

है नियति-प्रकृति की ऋतुओं में
संबंध कहीं कुछ अन जाना,
अब दिन बदले, घड़ियाँ बदलीं,
साजन आए, सावन आया ।

तूफ़ान उठा जब अंबर में
अंतर किसने झकझोर दिया,
मन के सौ बंद कपाटों को
क्षण भरके अंदर खोल दिया,

झोंका जब आया मधुवन में
प्रिय का संदेश लिए आया
ऐसी निकली ही धूप नहीं
जो साथ नहीं लाई छाया
अब दिन बदले, घड़ियाँ बदलीं,
साजन आए, सावन आया ।

घनके आँगनसे बिजली ने
जब नयनों से संकेत किया,
मेरी बे-होश-हवास पड़ी
आशा ने फिरसे चेत किया,

मुरझाती लतिका पर कोई
जैसे पानी के छींटे दे,
ओ’ फिर जीवन की साँसेले
उसकी म्रियमाण-जलीकाया ।
अब दिन बदले, घड़ियाँ बदलीं,
साजन आए, सावन आया ।

रोमांच हुआ जब अवनीका,
रोमांचित मेरे अंग हुए,
जैसे जादूकी लकड़ी से,
कोई दोनोंको संग छुए,

सिंचित-सा कंठ पपीहेका,
कोयलकी बोली भीगी-सी,
रस-डूबा, स्वरमें उतराया,
यह गीत नया मैंने गाया
अब दिन बदले, घड़ियाँ बदलीं,
साजन आए, सावन आया ।

साभार : काव्य


तीन काग

गजल