आपही सिपहसालार और आपही सिहाग हैं
फिर कौन है दूसरा, जिस ने लगाई ये आग है ।
हमें समझाने आते हैं सब लोग बारी– बारी
जो देखते नहीं, अपने गिरेबाँ में कितने दाग हैं ।
चाँदनी उतरा करती थी जहाँ पूरे शबाब पे
वो नदियाँ अब उल्टियाँ करती हुई झाग हैं ।
वो परिंदा बहुत खुश था अपना घोसला बनाके
जिसे पता नहीं था सैयादकी गिरफ़त में बाग़ है ।
यहाँ ना तो तूफ़ान हैं , ना हीअंधेरों का राज़ है
अब देखना है कि किस के हाथ में चराग़ है ।
घर का बँटवारा हुआ और बराबर हिस्सा मिला
अब मसअला ये है कि माँ किस के भाग है ।
सलिल सरोज
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