• २०८० जेठ १४ आइतबार

ग़ज़ल

कमला सिंह 'ज़ीनत'

कमला सिंह 'ज़ीनत'

बाख़ुदा तुमसे भी तो प्यार निभाए न बने
और मुझसे भी तुझे यार भुलाए न बने

ऐसे हालात में लेकर तू चला आया है
दिल किसी और तरीक़े से लुटाए न बने

बात इस दर्जा बिगाड़ी है तेरी बातों ने
चाहती हूँ की बने बात, बनाए न बने

आँख में दर्द की कुछ बूँद सिमट आए हैं
और हालात भी ऐसे हैं, बहाये न बने

कुछ सवालात भी ऐसे हैं के जो अपनों से
चाह कर भी तो किसी हाल बताए न बने

दिल की बस्ती में है ‘ज़ीनत’ बहुत वीरानी
हर किसी शक्ल को इस दिल में बसाए न बने .


कमला सिंह ‘ज़ीनत’ प्रेसिडेन्ट बज्म ए जीनत, नई दिल्ली
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