भोर होते ही सोमा निकल पड़ती है अपने घर से ताकि दूसरों के घरों की गंदगी बुहार सके; उनकी जूठन साफ कर सके। दिन भर काम में व्यस्त रहती है वह, परंतु उसके माथे पर कभी सिकन तक दिखाई नहीं पड़ती ।
– आज तुम कुछ परेशान से लग रही हो। तबीयत तो ठीक है न ?
– हां बीबी जी ! मैं ठीक हूं । कल वह फिर दारू पीकर देर रात घर आया था और नशे में उसने बोलना शुरू कर दिया। मैंने उसे सो जाने को कहा, तो उसने लात- घूंसे चलाने शुरू कर दिए । मैं रात भर दर्द से कराहती रही और अपनी तक़दीर को कोसती रही । सुबह उठ कर मैं तो यहां आ गई। पता है, आज तो मैं उसके लिए खाना भी नहीं बना कर आयी ।
– क्यों सहन करती हो तुम उसका अमानवीय व्यवहार ? जानती नहीं हो कि आजकल घरेलू हिंसा भी जुर्म है । उसकी शिकायत क्यों नहीं कर देती थाने में ? जेल में उसे छठी का दूध याद आ जाएगा ।
– न बीबी जी न… ऐसा करने पर जात- बिरादरी के लोग क्या कहेंगे ? हमारे खानदान की तो नाक कट जाएगी । सब थू- थू करेंगे । मरद जात है, कभी मारे हैं, तो कभी प्यार भी करे है । इसका मतलब यह तो नहीं कि हम दुनिया वालों को तमाशा दिखाएं ।
– इस हक़ीक़त से कोई इन्कार नहीं कर सकता कि औरत को आजीवन पति की प्रताड़ना सहन करनी पड़ती है और उसकी ज़िन्दगी नरक से भी बदतर होती है।
डॉ मुक्ता, वरिष्ठ लेखिका, गुरुग्राम, हरियाणा, भारत
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