• २०८१ माघ १ मङ्गलबार

हादसा

ध्रुव जोशी

ध्रुव जोशी

हादसा को जीना सिखो वो होनी थी हो गई जैसे
हादसों से डर के कोई मुस्कुराना छोड दे कैसे

जलजलों के जद में जो सदा रहता आया है
घर के अन्दर वो सकूं से सोना छोड दे कैसे

हयात-ए-सफर के हर लमहे को जीना पडता है
जिन्दा हैं तो कभी खुशी कभी गम से गुजरना पडता है

हादसों से उबरने के लिए दिल में हौसला जरूरी है
सफर मुकम्मल हो हमसफर का साथ लाजिम है

हादसा के माजी को भूलकर गमों से बाहर निकलो
जिन्दगी खूबशुरत होती है बागों के बहारों से सिखो

एव-जू है बहुत पर रवादार मिलते है कम यहाँ
दश्त पार करो होगा इन्तजार में समन्दर वहाँ

(शब्दार्थ- जद : चोट, निशाना । हयात-ए-सफर : जिन्दगी का सफर । मुकम्मल : पूरा करना ।
लाजिम : जरूरी । माजी : अतीत । रवादार : शुभ चिन्तक,  हितैषी । एव-जू : दोष ढूढने वाला । दश्त : जंगल ।)


(जोशी चर्चित हिन्दी साहित्यकार हैं ।)
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