• २०८१ असोज २९ मङ्गलबार

सिंघिनी

सुषमा दीक्षित शुक्ला

सुषमा दीक्षित शुक्ला

स्वर्ण की जंजीर बांधे,
स्वान फिर भी स्वान है ।

धूल धूषित सिंहिनी,
पाती सदा सम्मान है।

आत्मनिर्भर स्वाभिमानी,
शौर्य ही पहचान है ।

हार ना स्वीकारती,
जाती भले ही जान है।

मान खातिर प्राण देती,
सहती न वह अपमान है।

वीरता ही धर्म उसका,
शौर्य ही ईमान है ।

शत्रु भय से वह कभी,
होती नही हैरान है।

परिभाषा उसी से शौर्य की,
सच सिंहिनी महान है ।


सुषमा दीक्षित शुक्ला, लखनऊ, उ.प्र.-भारत
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