आधी रात है
और
तुम्हारा खूबसूरत चेहरा याद
आ रहा है मुझे
वो होठों के किनारे
वो कमानीदार भवें
वो लम्बे घने केश
जिसने जकड़ लिया है मुझे
नागपाशकी तरह
करवटें बदलता सोच रहा हूँ
ये कौन सी उम्मीदें हैं तुमसे
जो
मेरी नींदें उड़ा ले गई हैं
ये सरसराती हवाएँ
ये सूनी गलियां
ये उदास खडे पेड
क्या ये सब भी बैचैन हैं
मेरी तरह ।
ये टिमटिमाते जुगनू
ये बुझा- बुझा सा पीला चाँद
ये अलसाए हुए तारे हैं
या कोई पागल प्रेमी
जो
जाग रहे हैं अबतक
मेरे साथ- साथ।
डा. बिशन ‘सागर’ जालन्धर भारत निवासी चर्चित कवि है ।
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