• २०८१ श्रावाण १२ शनिवार

जीवन संघर्ष

बिष्णुलाल कुमाल

बिष्णुलाल कुमाल

हमें आनन्द से अब जीना है,
नहीं घुट घुट के जहर पीना है ।

भले ये जिन्दगी अब थोडी है,
नहीं सिकवा ना कोई रोना है।

सोंच था जिन्दगी इक नदिया है,
खुशी आनन्द साथ बहना है ।।

नहीं करतें हैं कभी गम के क्षण,
बस यही सोंच के ही सोना है ।

गजब जिन्दगी भर डटेही रहो,
जीवन भर लडते ही बिताना है ।

होती गति साँप और छुछंदर की,
गुड भरी हँशिया को भी खाना है ।

बिष्णु जीवन प्रयोग और तपस्या है,
होगे सफल डिग्री अन्तमें ही पाना है ।


(नेपालगंज–५ बाँके, लुम्बिनी प्रदेश ।)
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