• २०८२ मंसिर ७, आईतवार

कवि योगेंद्र पांडे की चार यादगार कविताएँ

योगेंद्र पांडे

योगेंद्र पांडे

स्मृतियाँ…

१.
कोई पुरानी बात याद आती है
और मन ठहर सा जाता है
कुछ पल के लिए
कि जैसे शाम की खामोशी
और तालाब का ठहरा हुआ पानी ।

फिर अचानक तालाब के पानी में
एक लहर उठती है
जैसे किसी ने पत्थर फेंका हो
मैं वापस लौट आता हूँ
वर्तमान में
कि मेरे मन के तालाब में
कोई पत्थर फेंका है
अभी अभी ।।

२.
मन की यात्रा की कोई सीमा रेखा नहीं होती
मन चंचल है
चतुर है
नहीं रुकता क्षण भर के लिए भी ।

अतीत की खामोश गलियारों में
घूमना पसंद है मेरे मन को
मैं नहीं रोक पाता मन को
पुराने दिनों की यादों में गुम होने से ।

गाँव की गलियाँ, खेत(खलिहान
बाग(बगीचे
सब आ जाते हैं स्मृति-पटल पर बेझिझक
और मैं सिहर-सा जाता हूँ
पल दो पल के लिए ।।

३.
कभी(कभी तुम आ जाती हो
मन के एकांत झरोखे पर
मुस्कुराते हुए कि
अभी-अभी मिलना हुआ हो तुमसे
मगर तुमसे मिले वर्षों हो गए ।

तुम वैसी ही हो
जैसी तुमको छोड़ आया था मैं
सरल, सहज और शर्मीली
आज भी तुम नहीं भूलती हो
खूब बतियाना और हँसना-खिलखिलाना ।
आज भी तुम आ जाती हो
मेरे मन में
किसी कविता की चार पंक्तियाँ बनकर ।।

४.
तुम्हारी याद आने से
ज़िंदा हो जाता हूँ मैं
कि जैसे मुरझाए हुए मौसम को
बड़े सलीके से छूता है बसंत
और चहकने लगते हैं परिंदे
मेरे उदास और एकांत जीवन में ।

तुम्हारी यादें हैं जीवनदायिनी
किसी संजीवनी मंत्र-सा सिद्ध
इन यादों में मैं ढूँढ़ता हूँ
बीते हुए सुखद एक-एक पल का एहसास
स्मृतियाँ होती हैं एकाकी जीवन के साथी
सतत ज़िंदा रहने की प्रेरणा ।

मैं जब भी टूटा हूँ, बिखरा हूँ
जीवन की आपाधापी में
तब सिर्फ़ तुम्हारी यादों ने संभाला है मुझे ।।


योगेंद्र पांडेय
सलेमपुर, देवरिया, उत्तर प्रदेश