हिन्दी कविता

कल-कल करके नदिया बहती ।
हर-पल हर-क्षण बहती रहती ।।
धरती की प्यास बुझाने में
अपनी गाथा सबसे कहती ।।
ऊँचे पर्वत से आती हूँ ।
टेढ़ा-मेढ़ा पथ पाती हूँ ।।
गाँव शहर से होते-होते
सागर को गले लगाती हूँ ।।
नही बिजूके से डरती हूँ ।
खेतो में पानी भरती हूँ ।
गेहूँ की बाली फिर झूमे
सपनों को पूरा करती हूँ ।।
नालों का कूड़ा भरते हैं ।
कब परिणामों से डरते हैं ।।
गंदा पानी हो जाता तब
मुझको मैला क्यों करते हैं ।।
सदियों से मैं पूजी जाती ।
ऋषियों मुनियों का तप पाती ।।
बाँध सरोवर मुझ पर बनते
जीवन को नित सुखी बनाती ।।
अनिता सुधीर आख्या