समाचार
कितनी बदल गयी हैं
चीजें समय के साथ-साथ
बचपन,जवानी और बुढापा
हमारा बचपन जीता था
अपने बचपन को खुलकर
वो घर के बाहर दौड़ना, खेलना
पूरी धरती और आकाश को
अपना समझना
आज सिर्फ एक मोबाइल है
और एक बंद कमरा
अपने माता-पिता के काम में
हमारी जवानी हाथ बटाती थी
आज कमरे में मोबाइल लेकर
छिप जाते हैं बच्चे
कहीं माँ कोई काम ना बता दे
पिताजी कहीं पढ़ने को ना कह दें
सामने नहीं आते आज के जवान
पिता से नज़र चुराकर भागते हैं
वह सादगी और समर्पण लुप्त है
जाने किस लक्ष्य की खोज में
आज के अधिकाधिक युवा
छिप रहे हैं,
जगह तलाश कर रहे हैं छिपने की
हमने देखा है अपने दादा दादी के बुढ़ापे को
वो खुशमिज़ाज़ बुढापा
जहाँ नैराश्य का कोई स्थान नहीं था
अस्पताल संवेदनशील होता था
लोग भर्ती होकर भी बाहर आ ही जाते थे
आज भी कुछ लोग भर्ती होकर आते हैं बाहर
आश्चर्यचकित होकर
सच कितनी बदल गयी हैं चीजें
समय के साथ-साथ ।
अनिल कुमार मिश्र,राँची ।