कविता

मार हथौड़ा,
कर कर चोट
लाल हुए काले लोहे को
जैसा चाहे वैसा मोड़ ।
मार हथौड़ा,
कर कर चोट
थोड़े नहीं- अनेकों गढ़ ले
फ़ौलादी नरसिंह करोड़ ।
मार हथौड़ा
कर कर चोट
लोहू और पसीने से ही
बंधन की दीवारें तोड़ ।
मार हथौड़ा
कर कर चोट
दुनिया की जाती ताक़त हो,
जल्दी छवि से नाता जोड़ !
केदारनाथ अग्रवाल