• २०८२ आश्विन २९, बुधबार

फ़कीर

अनिल कुमार मिश्र

अनिल कुमार मिश्र

छल से, प्रपंच से बच गया हूँ अब तो मैं
आज मुझे रिश्तों की नई भीड़ चाहिए
बीत गए दिन और दशक लुप्त हुए दर्द सभी
अपनों के मुखोटे वाले नये रिश्ते चाहिए ।

अपनों के दिये दर्द, घाव सारे सूख रहे
ज़ख्मों पे मिर्ची  छिड़कने वाले चाहिए
आ भी जाओ देर मत करना नहीं रिश्ते मेरे
घाव मेरे सूखे नहीं, सभी जिंदा चाहिए ।

ज़िन्दगी को रौंदा जिसने वो सभी अपने ही थे
रिश्तों की परिधि के भीतर अपने ही थे
छल किया, दर्द दिया लूट लिया सब कुछ ही
प्रेम नही रिश्तों से नफरत ज़िंदा चाहिए ।

पाल सकें, पोष सकें नफ़रत को दिल मे हम
द्वेष को निभा सकें, रिश्ते ज़िंदा चाहिए
ईश ने बचा रखा है छल से प्रपंच से भी
छोटा सा नेह-नीड़,अरि-प्रेम चाहिए ।

रक्त से,रिश्तों से,अपनो से बचें सभी
ज़िन्दगी है चार दिन की हरि-प्रेम चाहिए
कोई करे छल यहाँ, प्रपंच से सजाए मन को
हम हैं फ़कीर यहाँ राम नाम गाइए ।

द्वेष-बैर भूलकर क्षमा करें सबको ही
हम सब हैं फ़कीर यहाँ राम-राम गाइए ।
हम सब हैं फ़कीर यहाँ राम-राम गाइए ।


अनिल कुमार मिश्र
राँची, झारखंड, भारत ।