प्रकृति की गोद में घूमते-घूमते आनंद परमानंद को झेलते- झेलते खुशी के हर पल से जब थक जाओगे ना बसंत ! तो आ जाना मेरे पास मैंने रखा है अपने पास कुछ दुःख, कुछ निस्तब्ध पीड़ा पिघलती मानवता के ताने-बाने तुम्हारे मनोरंजन के लिए ।
अनिल कुमार मिश्र