तेल के बिन
गाड़ी नहीं चलती
सभी रूकते
यादें उछली
बन के ज्वारभाटा
टूटे किनारे
मैं जाना दूर
मंजिल बुलाती है
लंबी उड़ारी
याद तेरी तो
शबनम के मोती
रात जो रोई
समय रथ
दिन रात चलता
कभी ना रूके
मान के देखा
पतझर मौसम
नई जो ऋतु
करो सलाम
डूबते सूरज को
कि आए कल
चल रहा है
दुखी सुखी दरिया
यही जीवन
समय बीच
मैं तो गुजर गया
बन पवन
कश्मीरी लाल चावला
संपादक, अदबी माला, हिंदी मासिक
मुकतसर 152026 पंजाब भारत