• २०८१ फागुन ६ मङ्गलबार

तंग सी धूप

अशोक बाबू माहौर

अशोक बाबू माहौर

उस खिड़की से
आती है
तंग सी धूप
हर रोज ।

घर के
कुछ लोग
तंग सी धूप का
स्वागत करते हैं,
कुछ लोग
विरोध ।

शाम होते ही
जब चली जाती है
तंग सी धूप
तो याद करते हैं
सभी लोग ।


अशोक बाबू माहौर