हमें आनन्द से अब जीना है,
नहीं घुट-घुट के जहर पीना है ।
भले ये जिन्दगी अब थोडी है,
नहीं शिकवा ना कोई रोना है ।
सोच थी जिन्दगी इक नदिया है
खुशी आनन्द साथ बहना है ।।
नहीं कटते हैं कभी गम के क्षण,
बस यही सोच के ही सोना है ।
गजब जिन्दगी भर डटे ही रहो,
जीवन भर लडते ही बिताना है ।
होती गति साँप और छछुंदर की,
गुड भरी हँशिया को भी खाना है ।
विष्णु जीवन प्रयोग और तपस्या है,
होगे सफल डिग्री अन्त में ही पाना है ।
(अवधी, हिन्दी, नेपाली साहित्यकार, वरिष्ठ अवधी लोक चित्रकार ,नेपालगंज- ५ बाँके लुम्बिनी प्रदेश, नेपाल )
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