नदी
एक उन्मुक्त नदी
निर्बंध, निडर
बाँध तोड़ बहने को उत्सुक
कब रोक पायी
उसे बेबस बाड़र ?
आ, गेसुओं की सुगन्ध
मुझसे गले मिल जा ।
हवा का कोना-कोना
मुक्ति गीत है मेरा
प्राण वायु लायेगी नया सबेरा ।
एक उन्मुक्त नदी
जो निर्बंध बहती है-
कौन रोक पाया है उसेरु
आ, मेरा मुझसे आलोकित हो
दीप्त कर अंधियार
सुबह की सुनहरी रेशमी डोर ही
तोड़ेगी मन की कारा
तुम मानो न मानो
मुझे न भाता तुम्हारा उपकार
आ, चल सखी
हमें मोड़नी है जीवन की धारा ।
अनिता भारती