• २०८१ कातिर्क २२ बिहीबार

नदी

अनिता भारती

अनिता भारती

नदी
एक उन्मुक्त नदी
निर्बंध, निडर
बाँध तोड़ बहने को उत्सुक
कब रोक पायी
उसे बेबस बाड़र ?

आ, गेसुओं की सुगन्ध
मुझसे गले मिल जा ।
हवा का कोना-कोना
मुक्ति गीत है मेरा
प्राण वायु लायेगी नया सबेरा ।

एक उन्मुक्त नदी
जो निर्बंध बहती है-
कौन रोक पाया है उसेरु

आ, मेरा मुझसे आलोकित हो
दीप्त कर अंधियार
सुबह की सुनहरी रेशमी डोर ही
तोड़ेगी मन की कारा

तुम मानो न मानो
मुझे न भाता तुम्हारा उपकार
आ, चल सखी
हमें मोड़नी है जीवन की धारा ।


अनिता भारती