• २०८१ श्रावाण ११ शुक्रबार

तुमने कहा था

डा. आरती कुमारी

डा. आरती कुमारी

मेरे हाथों को अपने हाथों में लिए
तुमने कहा था एक दिन
कि जुदाई की सारी लकीरें
अपनी हथेली से
मिटा दी हैं तुमने
और उड़ेल दिया था उस लम्हे
अपना सारा अनकहा प्यार ।।

छू लिया था गहरे तक
मेरे संवेदन मन को तुमने
और कर दिया था स्पंदित
मेरे रोम रोम को ।।

मेरी उंगलियों को
अपनी उंगलियों में बांध
कर लिया था तुमने
खामोशी से एक अनुबंध
और दौड़ गया था रगों में मेरे
उल्लास का वसंत
तुम्हारे स्पर्श की ऊष्मा से
पिघलती रही थी मैं देर तक
और टिका दिया था अपना सिर
तुम्हारे काँधे पर
जैसे करती है धूप
आराम शाखों पर ।।
और लौट आती है चिडि़या
घोंसलों में अपने ।।


(सहायक शिक्षिका और प्राथमिक शिक्षक शिक्षा महाविद्यालय, पोखरैरा में अतिथि व्यख्याता । माडि़पुर, मुज्ज़फ्फ़रपुर, बिहार, भारत)
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