इसी विप्लव में कुछ पल को मौन का स्पर्श अनहद साकार जब होता है
पत्तों सी सिहरन लिए छाया बन आकृति तुम्हारी अनुभूति मेरी सगन बन अलंकृत मन आलाप बन, मेरे साथ साथ रहती है !!
अनुपमा त्रिपाठी