इराकी कविता

मुझे,
बहुत प्रिय लगता था
वह चेहरा
अब सबसे ज्यादा
नफरत लगता हैं
वही चेहरा !
धीरे-धीरे गिर गयी है
चेहरे से शालीनता
हृदय से संवेदनशीलता
व्यवहार से विनम्रता !
टूट गए
भरोसे के पुल
गिर गये विश्वास के धरोहर
बिखर गये सुन्दर सपने !
धीरे-धीरे धुल गया
चेहरे से कृत्रिम रंग
समय के साथ बदल गया रूप
सिकुड़ गये रिश्तों के आयाम
और,
खण्डहर हो गये
स्मृति के पन्नों से
रेत में उकेरी हुई
सुंदर आकृतियां ।
किशन पौडेल, हेटौंडा