संस्मरण/अनुभूति

अब नहीं भटकना है
मन की पगडंडियों पर
दुख के व्योम में नहीं भटकने दूंगी
अपनी कविताओं को
भावुकता भरे शब्द
अब नहीं करेंगे स्पर्श
मेरी कविताओं को
नहीं लिखूंगी ऐसी कोई कविता
जो तुम तक पहुंचे
स्मृतियों को तो
अब कतई नहीं लिखना है
अतल में उमड़ते (घुमड़ते
अवसाद भरे शब्दों का
कर दूंगी तर्पण
दुख के आंसू बहाते
नहीं लिखनी कोई कविता
अपनी कविताओं को
उस बेचैनी से मुक्त कर दूंगी
जो नींद तक पहुँच कर भी
सोने नहीं देती है
पौ फट चुकी है
सुनी आंखों के चौराहे
व्यस्त रहने लगे हैं
यादों का नेपथ्य मीठे संगीत से
गुलजार है इन दिनों
अब कलम स्मृतियाँ नहीं
स्वप्न लिखेगी
फूल, पर्वत और नदी लिखेगी
गर्भ में मेरे और भी शब्द हैं
जो अपनेपन की ऊष्मा पाते ही
अंकुरित हो उठते हैं
उन्माद में रौंदे गए शब्द
अब संतुलन के साथ
समय के प्रवाह में
बह कर बनेगी,
तूफानी हिमपातों में भी
अब, तसल्ली का हर पल
तन्मयता से जियेगी
मेरी कविता…
यह खुशफहमियों का झूठ है या
सच्चाइयों का सच खुदा जाने… !
(स्वतंत्र लेखन, राँची झारखंड, भारत)
[email protected]