सावन का झूला इस बार इतना बड़ा डालना जिसमें समा जाए संसार ।
उस डाली पर जो फैली है आसमान के पार उस रस्सी का कोई न जिसका पारावार !
एक पेंग में मंगल ग्रह के द्वार और दूसरी में इकदम से अंतरिक्ष के पार !
नवीन सागर