• २०८० असोज ७ आइतबार

सावन का झूला

नवीन सागर

नवीन सागर

सावन का झूला इस बार
इतना बड़ा डालना
जिसमें समा जाए संसार ।

उस डाली पर
जो फैली है आसमान के पार
उस रस्सी का
कोई न जिसका पारावार !

एक पेंग में मंगल ग्रह के द्वार
और दूसरी में
इकदम से अंतरिक्ष के पार !


नवीन सागर