• २०८१ माघ २७ आइतबार

सावन बहका है

रजनी मोरवाल

रजनी मोरवाल

लो, सावन बहका है
बूँदों पर है खुमार, मनुवा भी बहका है ।
बागों में मेले हैं
फूलों के ठेले हैं,
झूलों के मौसम में
साथी अलबेले हैं ।
कलियों पर है उभार, भँवरा भी चहका है ।
ऋतुएँ जो झाँक रहीं
मौसम को आँक रहीं,
धरती की चूनर पर
गोटे को टाँक रहीं ।
उपवन पर हो सवार, अम्बुआ भी लहका है ।
कोयलिया टेर रही
बदली को हेर रही,
विरहन की आँखों को
आशाएँ घेर रही ।
यौवन पर है निखार, तन–मन भी दहका है ।


रजनी मोरवाल