समाचार

नारी नहीं होती केवल
ममता की एक नदी
उसका विस्तृत आँचल
समेटे हुए है
महासागर का अथाह जल
उफनती, ललकारती
उन्मत्त लहरें
जो समा जाती हैं उसी में
क्योंकि
उसका अन्तरमन भरा है
शीतलता से
वह पुकारती है
उन तडपती मछलियों को
जो छुट जाती हैं तटबन्ध पर
स्वयं के अंक में
समा लेने के लिए
फिर से ।
पुरवाई और अन्धड दोनों की
संगमस्थली है नारी
आँसु बहाती है दुःख में
और सुख में भी
अश्रु–धार मुस्कुराने लगती है
उसके गालों पर
स्पर्श से ।
पावन हो जाते हैं आँसू
उसकी आँखो के सागर में
डुबकी लगाकर
उसकी नेह की
पवित्रता से ।
साभार: अनेक पल और मैं (कवितासङ्ग्रह)
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(चौधरी विशिष्ट साहित्यकार हुन् ।)