• २०८१ कातिर्क २३ शुक्रबार

मरण श्रेष्ठ है

संदीप मिश्र ‘सरस’

संदीप मिश्र ‘सरस’

गीत मुखर वेदना को सहेजकर जीना भी कैसा जीना है,
जीवन यदि जीवन्त नहीं हो, तो जीवन से मरण श्रेष्ठ है ।।

बाधाओं के सम्मुख कैसे, नतमस्तक हो झुक जायेंगे ।
थककर चूर हुए भी तो क्या, हार मानकर रुक जायेंगे ।

पथ के कण्टक पुष्प बनाना, पौरुष का परिचय होता है,
पथ को जो गौरव दे पाए, मानूँगा वह चरण श्रेष्ठ है ।।

जनहित जगहित मानवता से, बढ़कर कोई धर्म नहीं है ।
भूखे को रोटी देने से, बेहतर कोई कर्म नहीं है ।

व्यक्ति नहीं व्यक्तित्व अमर है, हम बदलेंगे युग बदलेगा,
जीवन को अमरत्व सौंप दे, ऐसा शुभ आचरण श्रेष्ठ है ।।

मंज़िल से पहले रुक जाना, यह यात्री का काम नहीं है ।
जीवन पथ पर चलना जीवन, पलभर भी विश्राम नहीं है ।

ठहरा जल सडांध देता है, बहते रहना ही जीवन है,
हर क्षण जीवन गान सुनाती सरिता का अनुसरण श्रेष्ठ है ।।


संदीप मिश्र ‘सरस’, उत्तरप्रदेश, भारत