• २०८१ फागुन ६ मङ्गलबार

प्यार का सम्बन्ध

संजीव निगम

संजीव निगम

सुनो कुछ संबंध ऐसे होते हैं,
जो जब तक छूटने का एहसास न आए,
तब तक उपेक्षित से रहते हैं,
रहते हैं taken for granted से
मन के किसी कोने में।

कभी बने होते हैं वे मनोरंजन,
कभी खेल,
कभी यूँही कुछ खट्टी मीठी भावनाओं का गोला सा ।
बस यूँही बना लेते हैं उनसे
एक रेत का घरोंदा सा
जिसे कभी घर समझते हैं
तो कभी एक खिलौना सा ।
हाँ, पर नहीं होता है बर्दाश्त
उसका टूटना, बिखरना, बिछड़ना ।
तब होता है एहसास
कि यह संबंध कितना है खास ।
कभी कभी प्यार का संबंध भी
बस ऐसा होता है ।

संजीव निगम, मुम्बई, महाराष्ट्र