• २०८० मंसिर १८ सोमबार

क्रुर दुनिया

बसन्त चौधरी

बसन्त चौधरी

यह दुनिया जालिम है !
मुझे अपने में छुपने दो
अरे ओ फूल !
मुझे अपनी सुगंधों में खो जाने दो
अपनी हरियाली की मादकता को
जी भर के पीने दो !

तुम्हारे स्वागत में देखो,
मैंने क्षितिज को धूप से चमकाया है
चिडियों की चहचहाहट सँजोकर
संगीत बनाया है !

आँखों में नजारें भरे हैं
इन नजारों को नजरें दी हैं
ताकि नजारे भी तुम्हें, सिर्फ तुम्हें ही देखा करें
और फिर किसी नजारे की जरूरत नहीं पडे
देखने के लिए !
क्या जरूरत है भविष्य की ?
जबकि फैला हुआ है चारों तरफ
उजाला ही उजाला सौ फीसदी !

अब वक्त चाहे मुझे जहाँ कहीं भी पटक दे
लेकिन वर्तमान मेरे ही साथ रहने वाला है
कभी अलग कभी अलग नहीं होने वाला
यही शाश्वत है, यही सच्चाई है !

साभार: चाहतों के साये मेंं


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(चौधरी विशिष्ट साहित्यकार हैं ।)