• २०८१ माघ ५ शनिवार

प्रियतम, तू मेरी हाला है, मैं तेरा प्यासा प्याला

हरिवंशराय बच्चन

हरिवंशराय बच्चन

प्यास तुझे तो, विश्वत पाकर पूर्ण निकालूँगा हाला,
एक पाँवसे साकी बनकर नाचूँगा लेकर प्याला,
जीवन की मधुतातो तेरे ऊपर कब कावार चुका,
आज निछावर कर दूँगा मैं तुझ पर जगकी मधुशाला ।।

प्रियतम, तू मेरी हाला है, मैं तेरा प्यासा प्याला,
अपनेको मुझमें भरकर तू बनता है पीने वाला,
मैं तुझको छकछलका करता, मस्त मुझे पी तू होता,
एक दूसरेकी हम दोनों आज परस्पर मधुशाला ।।

भावुकता अंगूर लतासे खींच कल्पनाकी हाला,
कवि साकी बनकर आया है भरकर कविताका प्याला,
कभीन कण-भर खाली हो गाला खपिएँ, दोला खपिएँ !
पाठक गण हैं पीने वाले, पुस्तक मेरी मधुशाला ।।

मधुर भावनाओं की सुमधुर नित्य बनाता हूँ हाला,
भरता हूँ इस मधुसे अपने अंतरका प्यासा प्याला,
उठा कल्पना के हाथों से स्वयं उसे पी जाता हूँ,
अपने ही में हूँ मैं साकी, पीने वाला, मधुशाला ।।

मदिरालय जानेको घर से चलता है पीने वाला,
‘किस पथ से जाऊँ ?’ असमंजस में है वह भोला भाला,
अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ –
‘राह पकड़ तू एक चलाचल, पा जाएगा मधुशाला ।।

साभार : मधुशाला