...र शलभ

भले ही
मत आ तू
बाँध ले या छुपा ले
मेरे सुनहले सपने
तोड दे सारे
बँगले, अटारी
पहुँचा दे मुझे
रसातल में
या डुबो दे
मेरे मन को
गहरे दर्द के समन्दर में
कर दे टुकडे–टुकडे
मेरे शरीर के, मेरी चाहत के
परन्तु मैं हार
नहीं मानूँगा
और न ही
भिक्षुक की भाँति
हाथ फैलाऊँगा
तेरे सामने
नम नहीं करूँगा
मैं अपनी आँखें
बल्कि देखूँगा
उन्हीं भीगे नयनों से
वो सपना
जहाँ भरा है
मेरे जीवन का आनन्द
सुन ले याद !
ओ सुनहली, रूपहली याद !!
साभार: अनेक पल और मैं
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(चौधरी विशिष्ट साहित्यकार हैं ।