निःशब्द
ऐसा सशक्त शब्द है जो किसी दूसरे शब्द में कभी नहीं ढलता
जीवन भी मुझे ऐसा ही लगता है
न रंग, न रूप, न कोई ताना बाना
कभी किसी अर्थ में परिभाषित नहीं होने वाला, अपरिभाषिय !
फूल !
तुम क्या कहोगे इसे ?
शब्द निःशब्द, आवाज् नहीं नहीं है
लेकिन क्या यह बोल नहीं रहा ?
यही है वह महान शब्द
जो किसी की आवाज् से अभिव्यक्त नहीं होता ।
वैसी ही है सुन्दरता जिसे समझने के लिए
खुद भी मन से सुन्दर होना पड्ता है
जिसे देखने के लिए इन चर्म चक्षुओं को नहीं
बल्कि अन्तर्मन की आँखों को खोलना पड्ता है ।
सुन्दरता के लिए पागल हो जाने वाले
वासना के लिए निरन्तर साधना करने वाले
हम और तुम संसार को नरक से बचाने के लिए
कहो कब उठेंगें ?
आत्मा की सुगंध से इस मिट्टी को कब महकाएंगे ?
बताओ !
कब होंगे आगोश में इस ब्रह्मत्व के ?
कब होंगे जीवन्त हम इसके स्पर्श से ?
अगर अन्तःस्करण से चाहा जाए तो, कुछ भी असंभव नहीं ।
साभार: चाहतों के साये में
[email protected]
(चौधरी विशिष्ट साहित्यकार हैं