• २०८१ माघ २ बुधबार

अपनी ही शर्तों पर जीने वाली अमृता

डा. श्वेता दीप्ति

डा. श्वेता दीप्ति

चिंगारी तूने दी थी
यह दिल सदा जलता रहा
वक़्त कलम पकड़ कर
कोई हिसाब लिखता रहा

अमृता प्रीतम साहित्य की दुनिया का जाना-पहचाना नाम हैं । अमृता प्रीतम का जन्म पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त के गुजरांवाला शहर में हुआ था । अमृता की कविता में प्रेम की कसक, विरह की व्यथा, प्रेमी से अलगे जन्म में मिलने की कामना और ऐसे तमाम एहसास मिलते हैं । उनकी कविताओं में प्यार की धूप छांव के एहसास देखने को मिलते हैं ।

यूँ तो अकसर अमृता प्रीतम का ज़िक्र गीतकार-शायर साहिर लुधियानवी और चित्रकार इमरोज़ से जुड़े किस्सों के लिए होता रहता है ।
लेकिन इससे इतर अमृता प्रीतम की असल पहचान थी उनकी कलम से निकली वो किस्से कहानियों जो स्त्री मन को बेहद ख़ूबसूरती से टटोलते थीं…
1959 में पाकिस्तान में एक फिल्म आई थी ‘करतार सिंह’ जिसमें ज़ुबैदा ख़ानम और इनायत हुसैन भट्टी ने एक गीत गाया है- अज्ज आखां वारिस शाह नूँ कितों कबरां विच्चों बोल- वारिस शाह आज तुझसे मुख़ातिब हूँ, उठो कब्र में से बोलो ।

अमृता प्रीतम ने अपनी रचनाओं में सामाजिक जीवन दर्शन का बेबाक, यथार्थ एवं रोमांचपूर्ण वर्णन किया है । जिस भी विषय पर उनकी लेखनी चलती है; उन विषयों पर उनके लेखन की गहराई एवं गम्भीरता नजर आती है । उन्होंने सामाजिक मान्यताओं पर न केवल यथार्थता से लिखा है, अपितु उसे तोड़ने का साहस भी किया है ।
भारत विभाजन की त्रासदी का दर्द भोगते लोगों का मनोवैज्ञानिक चित्रण हो या भारतीय नारियों की बदलती हुई छवि, उसकी सोच को सजीव अभिव्यक्ति दी है । उनकी रचनाओं में सारा मानव-समाज व उसका दर्द बोलता है ।

हिंदी-पंजाबी लेखन में स्पष्टवादिता और विभाजन के दर्द को एक नए मुकाम पर ले जाने वाली अमृता प्रीतम ने समकालीन महिला साहित्यकारों के बीच अलग जगह बनाई। अमृता जी ने ऐसे समय में लेखनी में स्पष्टवादिता दिखाई, जब महिलाओं के लिए समाज के हर क्षेत्र में खुलापन एक तरह से वर्जित था। एक बार जब दूरदर्शन वालों ने उनके साहिर और इमरोज़ से रिश्ते के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, दुनिया में रिश्ता एक ही होता है-तड़प का, विरह की हिचकी का, और शहनाई का, जो विरह की हिचकी में भी सुनाई देती है – यही रिश्ता साहिर से भी था, इमरोज़ से भी है……।

अमृता जी की बेबाकी ने उन्हें अन्य महिला-लेखिकाओं से अलग पहचान दिलाई। जिस जमाने में महिलाओं में बेबाकी कम थी, उस समय उन्होंने स्पष्टवादिता दिखाई। यह किसी आश्चर्य से कम नहीं था । उन्होंने अपनी आत्मकथा लिखी तो उसका नाम रखा था ‘रसीदी टिकट’ जिसमें साहिर लुधियानवी से जुड़े कई किस्से भी हैं ।

रसीदी टिकट में अमृता प्रीतम लिखती हैं, “वो (साहिर) चुपचाप मेरे कमरे में सिगरेट पिया करता. आधी पीने के बाद सिगरेट बुझा देता और नई सिगरेट सुलगा लेता. जब वो जाता तो कमरे में उसकी पी हुई सिगरेटों की महक बची रहती. मैं उन सिगरेट के बटों को संभाल कर रखतीं और अकेले में उन बटों को दोबारा सुलगाती. जब मैं उन्हें अपनी उंगलियों में पकड़ती तो मुझे लगता कि मैं साहिर के हाथों को छू रही हूँ. इस तरह मुझे सिगरेट पीने की लत लगी ।”
अमृता और साहिर का रिश्ता ताउम्र चला लेकिन किसी अंजाम तक न पहुंचा । इसी बीच अमृता की ज़िंदगी में चित्रकार इमरोज़ आए. दोनों ताउम्र साथ एक छत के नीचे रहे लेकिन समाज के कायदों के अनुसार कभी शादी नहीं की । इमरोज़ अमृता से कहा करते थे- तू ही मेरा समाज है । और ये भी अजीब रिश्ता था जहाँ इमरोज़ भी साहिर को लेकर अमृता का एहसास जानते थे ।
बीबीसी से इंटरव्यू में इमरोज़ ने बताया था, “अमृता की उंगलियाँ हमेशा कुछ न कुछ लिखती रहती थीं… चाहे उनके हाथ में कलम हो या न हो. उन्होंने कई बार पीछे बैठे हुए मेरी पीठ पर साहिर का नाम लिख दिया. लेकिन फर्क क्या पड़ता है. वो उन्हें चाहती हैं तो चाहती हैं. मैं भी उन्हें चाहता हूँ ।” अमृता की ज़िंदगी के कई आयाम थे. ओशो से भी उनका जुड़ाव रहा और उनकी किताब की भूमिका भी उन्होंने लिखी ।

बचपन में ही माँ की मौत, बंटवारे का दर्द, एक ऐसी शादी जिसमें वो बरसों घुट कर रहीं, साहिर से प्रेम और फिर दूरियाँ और इमरोज़ का साथ.. अमृता प्रीतम का जीवन कई दुखों और सुखों से भरा रहा. उदासियों में घिरकर भी वो अपने शब्दों से उम्मीद दिलाती हैं जब वो लिखती हैं- । दुखांत यह नहीं होता कि ज़िंदगी की लंबी डगर पर समाज के बंधन अपने कांटे बिखेरते रहें और आपके पैरों से सारी उम्र लहू बहता रहे ।

दुखांत यह होता है कि आप लहूलुहान पैरों से एक उस जगह पर खड़े हो जाएं, जिसके आगे कोई रास्ता आपको बुलावा न दे समाज की रूढ़िवादी सोच को बदलने की कोशिश अमृता ने अपनी कविताओं और कहानियों में हमेशा की. प्यार के लिए लिखने वाली प्रीतम, जज़्बातों को शब्दों में पिरोना बखूबी जानती थीं । प्रीतम प्यार की ऐसी छवि थीं जो उन्हें पढ़ने वालों के दिलो-दिमाग में हमेशा बसेंगी ।