• २०८१ फागुन ७ बुधबार

उलझे सवाल

वन्दना गुप्ता

वन्दना गुप्ता

कई उलझे सवालों के बीच
कहा था उसने
मैं आना चाहता हूँ
तुम्हारे इतने करीब
जैसे आसमान का पहला सितारा
चांद के करीब
चेहरे पर खिलखिलाती तुम्हारी वो हंसी
छू लेना चाहती हैं मेरे लवों की खमोशी
माथे की सलवटों को चूम लेना चाहती हैं
मेरी अतृप्त लालसाएं
मैं बस जाना चाहता हूँ
सांसों में तुम्हारी
तुम समाहित हो पृथ्वी, आकाश
नक्षत्र, तारों के बीच
तुम मेरा विश्वास, हौसला
जीवन की अन्तर्कथा हो
मेरे गांव की पगड्डियां
नही जाती तुम्हारे शहर की ओर
मेरी कल्पित कल्पनाएँ
छू आती हैं
तुम्हारे महल, चौबारे
वे गलियां जहाँ गुजारे थे तुमने
अपने स्वप्निल पल
मेरे अहसास के परिन्दे
छू आते हैं तुम्हारी रुह
तुम मेरे जीवन का
सार्थक सन्दर्भ हो
और मृत्यु सत्य भी ।


वन्दना गुप्ता
(शिक्षिका एवं कवयित्री, सिलिगुडी, पश्चिम बंगाल, भारत।)