• २०८१ माघ ५ शनिवार

तुमने मुझसे मेरा कमरा ही छीन लिया

नौशीन परवीन

नौशीन परवीन

तुमने मुझे दिया
तो एक कमरा
जिसमें फूलदान
हवादान,
दीवारों पर लगी सीनरी
जो हमारी गुमसुम सी
मुस्कानको बरक़रार
रखती थी
वह कमरा जो हमारी
तस्वीरों से भरा था
स्टडी टेबल जिस पर
बैठकर मैं कुछ
कविताएँ लिखती थीं
चारो ओर से गहरा
सफ़ेद रंगका
इक कमरा
हर रोज़ मुझसे
अपने रंग बदल-बदल
कर बाते करता
भीनी-भीनी सी इत्रकी
ख़ुशबू जो अब कमरे से
विदा ले चुकी थीं
तुम उसे अब डोली पर
बैठा कर
वापिसले आए
तुमने मुझे दी पुनः
महकती हुई ख़ुशबू
तुमने मुझे दिया रात-बेरात
कि अनुपस्थिति
जिसे मैं
खुटे पर टाँगते हुए
बिस्तर पर सो जाती
हाँ तुमने मुझे दिया तो
एक कमरा
सारी सहूलियत
पर तुमने मेरे हिस्सेका
सिंगारदान मुझसे छीन लिया
तुमने मुझसे मेरे हिस्सेका
प्रेम छीन लिया
जिसमे उपलब्ध थीं
मेरी सारी ख़ुशियाँ
हक़ीक़त में
तुमने मुझसे
मेरा कमरा ही
छीन लिया था ।


रायपुर (छत्तीसगढ़), भारत