• २०८२ श्रावाण ५ आइतबार

खूबसूरत ज़िन्दगी

डॉ मुक्ता

डॉ मुक्ता

प्रेम प्रतिदान का पर्याय
नहीं किसी से कोई अपेक्षा
नशिकवा न कोई शिकायत
प्यार, त्याग व समर्पण
ज़िन्दगी का मूलमंत्र
ज़िन्दगी अहसास है
ज़ज़्बात है, चाहत है
त्याग है, समर्पण है
उत्सव समझ इसे मनालो
चंदलम्हे खुशी के चुरा लो

यहजहानबन जाएगा
तुम्हारे लिएनियामत
ज़रा मन से राग- द्वेष के
मलिनभावतो निकालो
उपेक्षा- अपेक्षा को तज
अपना सर्वस्व लुटा दो
बहारें लौट आएंगी
महकेगा उजड़ा गुलशन
ज़रा खुद को खुद में तलाश
मुलाकात करने की
आदत तो बनालो
यह जहान बन जाएगा स्वर्ग
मात्र अहंभावमन से मिटा दो
ज़िन्दगी खूबसूरत है
हर इंसानकी ज़रूरत है
प्रेमभाव से जी लो इसे
लौटकर न आएगी
बड़ी बेवफ़ा है, नटखट है
भोर होने का संदेश देती
चिडि़योंकी चहचहाहट
मुर्गेकी बांग आलस्य त्याग
जागने का संदेशा देती
ऊषाकी स्वर्णिम रश्मियां
धरा पर सिंदूरी आभा बिखेरतीं
मानव-मन को उल्लसित करतीं
ऊर्जा से आप्लावित करतीं
और मानव उस अलौकिक सौंदर्य में
भाव-विभोर हो सुधबुध खो बैठता
और मैं से तुम हो जाता


डा मुक्ता, हरियाणा, भारत


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