मैं
एक
सशक्त
धरती हुँ ।
ह रि या ली
आयुर्वेदकी माँ ।
नजाने कितने ही
आविष्कार यहाँ किए !
दुर्भाग्य देखो उसने ही
ममताकी किमत लगाया !
उजाड़ पेड़ पहाड़ ये
मिसाइल भी चलाते ।
बुन्द-बुन्दको रोते !
अट्टालिका पर ।
उच्चाभिलाषी !
सुधर जा
पुकारे
धरा
माँ ।
हिरनमयी आचार्य शर्मा, गुवाहाटी, असम ।
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