१.
दर्द का भी
अपना हिसाब है
मर्द को होता नहीं
और
औरत को छोड़ता नहीं
२.
दर्द
इंसान को
कभी खाली नहीं रहने देता
वरना
खाली रहना बहुत बड़ा दर्द है
३.
दर्द
कैसा भी हो
एक सीमा के बाद
अपना लगने लगता है
क्यों कि
अपनों से ज्यादा दर्द
किसी और से नहीं होता
४.
दर्द
पालते रहना चाहिए
क्षण भंगुर ख़ुशी के बाद
यही शाश्वत है
और
यही अनश्वर है
५.
दर्द
कभी सरहदों में
बँधा नहीं होता
उस पार
जब ज़मीं रोती है
इस पार
फसल कभी अच्छी नहीं होती
६.
दर्द
किसने दिया से
ज्यादा जरूरी है
दर्द क्यों लिया
हर एक से
हर चीजलिं नहीं जाती
७.
दर्द
पीठ दिखा कर भागता नहीं
साथ- साथ चलता रहता है
तब तक
जब तक
इसे स्वीकार नहीं लिया जाता
८.
दर्द
हर द्वार पर
किसी देवताकी तरह
खड़ा रहता है
और इंतज़ार में रहता है
अपने अर्घ्य के लिए
९.
दर्द
सिर्फ चीख-चीत्कारों में
घर नहीं करता
उससे पूछो
जो बोल सकता है
लेकिन कभी बोलता नहीं
१०.
दर्द
सफर है
हम पथिककी तरह
उसके रास्ते में
आते- जाते रहते हैं
सलिल सरोज, नई दिल्ली
salilmumtaz@gmail