फागुन के रंग मा रंगि जइहौ गोरिया ।
होली मा जब हमरे घर अइहौ गोरिय ।।
जौने दिना से हंसिकय तू बोलिव ।
हमरे करेजवा मा मिसरी घोलिव ।
तू भइव राधा अउर हम संवरिया ।।
सगरौ सिवान मा छाई सिन्दूरी ।
देखि देखि बहुतै चुभै अब ई दूरी ।
बेकल है मन तोहरे बिन गुजरिया ।।
सखियन का कौनो बहाना से टारेव ।
चुपके से हमका झरोखस पुकारेव ।
दरसन का तोहरे ई प्यासी नजरिया ।।
अबीर औ गुलाल से जिउ नाहीं मानी ।
जब ले कि रंग संग डारब न पानी ।
भीजि जाई अंग अंग भीजी घंघरिया ।।
(बहराइच, उत्तरप्रदेश, भारत)