सुनु आया मधुमास सखि, लगा हृदय बिच बाण ।
सिर्फ देह है सखि यहाँ, प्रियतम ढिंग है प्राण ।।
किसके हित सँवरूं सखी, किस पर करूं सिंगार ।
बाट निहारुं रात दिन, पिय नहिं सुनत पुकार ।।
ऋतु बासन्ती सुरमई, पिया मिलन का दौर ।
पियरी सरसों खेत में, बगियन में हैं बौर ।।
यह कैसो मधुमास सखि, जियरा चैन न पाय ।
नैनन से आंसू झरत, उर बहुतहि अकुलाय ।
पिय कबहूँ तो आयंगे, वापस घर की राह ।
बाट निहारूँ दिवस निसि, उर धरि चाह उछाह ।।
सबके प्रियतम संग हैं, मोरे हैं परदेस।
जियरा तड़पत रात दिन, यही हिया में क्लेष ।।
मन मेरो पिय संग है, भावे नहिं घर–ठौर ।
वह दिन सखि कब आइहैं पिय बनिहैं जब मौर ।
रात दिवस नित रटत हूँ, मैं उनही को नाम ।
वो ही मेरे चैन–सुख, वो ही चारोंधाम ।।
डर लागत है सुनु सखी, पिय भूले तो नाह ।
हम ही उनकी प्रेयसी, हम ही उनकी चाह ।।
ऋतु बासंती सुनु ठहर, जब लौं पिया न होय ।
कोयल पपिहा से कह्ये, शोर करै नहिं कोय ।।
सुषमा दीक्षित शुक्ला, आलमनगर, राजाजीपुरम, लखनऊ उ. प्र.
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