
मैं श्रमिक हूँ हाँ मैं श्रमिक हूँ ।
समय का वह प्रबल मंजर,
भेद कर लौटा पथिक हूँ ।
मैं श्रमिक हूँ हाँ मैं श्रमिक हूँ ।
अग्निपथ पर नित्य चलना,
ही श्रमिक का धर्म है ।
कंटको के घाव सहना,
ही श्रमिक का मर्म है ।
वक्त ने करवट बदल दी,
आज अपने दर चला हूँ ।
भुखमरी के दंश से लड़,
आज वापस घर चला हूँ ।
मैं कर्म से डरता नही,
खोद धरती जल निकालूँ ।
शहर के तज कारखाने,
गांव जा फिर हल निकालूँ ।
कर्म ही मम धर्म है,
कर्म पथ का मैं पथिक हूँ ।
समय का वह प्रबल मंजर,
भेद कर लौटा पथिक हूँ ।
( लखनउ, भारत निवासी शुक्ला चर्चित कवि हैं ।)