कभी-कभी ख्वाब तो
ख्वाब ही रह जाते हैं
बस ! मन को छू कर
तसल्ली थोड़ी दे जाते हैं
जैसे उनींदी नैनों ने
देखा हो कोई अनोखा
ना भुला सपना ।
जिंदगी की रफ्तार में
न जाने कौन कहां
मिल के बिछड़ जाते हैं
कभी तो अपने ही जो
पराए बन जाते हैं
और कभी कहीं-कहीं
पराए हो कर भी वो तो
लगते अपनों से अपने हैं ।
उम्र की सीढ़ी चढ़ते-चढ़ते
यादें कुछ होती धुंधली
पर बीती बचपन की
कट्टीश की दोस्ती
बसी रहती है दिल में
दीप्तिमान… जैसे
एक उज्जवल नक्षत्र !
हावडा पश्चिम बंगाल
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