पर्व होरी कमाल हलचल बा,
चेहरा पर अबीर के छल बा ।
लोग आवें नजिक शहद बनके,
दोस्ती में कटार लागल बा ।
ठेस लगते सँभार ल$ खुद के,
लोग दुख से तमाम घायल बा ।
आँख के नीन रूप ले गइलख,
रूप सूनर हिज़ाब चंचल बा ।
छूट जाला जहान के दौलत,
लोभ लालच खराब जंगल बा ।
भेद सभि खोल दी मुहब्बत के,
गोड़ के ई घताह छागल बा ।
(शिक्षिका । नेपाली हिन्दी भोजपुरी में लेखन वीरगंज)
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