अंधियारे से लड़ जाने को
एक दिया ही काफी है
प्राणों में अग्नि जो भर दे
एक चिंगारी काफी है
अंधियारे से लड़ने को
एक दिया ही काफी है
नन्ही चिड़िया एक-एक दाना
चोंच में भरके लाती है
पेट की ज्वाला बुझ जाने को
एक ही दाना काफी है
कितने पत्थर हो राहों में
मंजिल कितनी दूरी हो
राह बना दे दुर्गम पथ पर
एक ही मांझी काफी है
पँख लगे पांवो में जिसके
बांध हवा को चलती है
माथे की चन्दन बन जाये
एक ही बेटी काफी है
गिर के मुरझा जाने को
पुष्प नही खिलते हैं
होंठों के मुस्कानों को
एक सुमन ही काफी है
अंधियारे से लड़ जाने को
एक दिया ही काफी है।
अज्ञान को दूर भगाए
प्रज्ञा का एक दीप जलाएं
अंधियारा मिट जाने को
एक हस्ताक्षर काफी है
अंधियारे से लड़ जाने को
एक दिया ही काफी है।
(डॅा. ओस हिन्दी की चर्चित साहित्यकार हैं ।)
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