• २०८१ माघ ३० बुधबार

कविता

प्रदीप बहराइच

प्रदीप बहराइच

आज मैं क्या लिखूँ ?
अंतर्मन की व्यथा लिखूँ
या अशक्त देह की दशा लिखूँ ?

आँसुओं को पोंछ कर
यातना सहेज कर
मुस्कुराते होंठ की अदा लिखूँ ?

दिन के उजाले में
रात के वीराने में
वहशियों के सच का बयाँ लिखूँ ?

निष्कपट, निष्कलंक
हवाओं की आस में
घुट रही जिंदगी की इंतहा लिखूँ ?

कब, कहाँ, किस तरह
बिखर जाएँ हम
ऐसे हालात पर अब क्या लिखूँ ?


(स्वतंत्र लेखन, बहराइच, उत्तरप्रदेश, भारत)
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