प्रेम

आज मैं क्या लिखूँ ?
अंतर्मन की व्यथा लिखूँ
या अशक्त देह की दशा लिखूँ ?
आँसुओं को पोंछ कर
यातना सहेज कर
मुस्कुराते होंठ की अदा लिखूँ ?
दिन के उजाले में
रात के वीराने में
वहशियों के सच का बयाँ लिखूँ ?
निष्कपट, निष्कलंक
हवाओं की आस में
घुट रही जिंदगी की इंतहा लिखूँ ?
कब, कहाँ, किस तरह
बिखर जाएँ हम
ऐसे हालात पर अब क्या लिखूँ ?
(स्वतंत्र लेखन, बहराइच, उत्तरप्रदेश, भारत)
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