मिट गए हम तो उनकी ख़ुशी के लिए
जो तड़फते रहे जिंदगी के लिए
आज परवाह उन्हें भी हमारी नहीं
दुःख सहे हमने हर पल उन्हीं के लिए
जब हमारा यहाँ पर नहीं है कोई
फिर दुआ क्यों करें हम किसी के लिए
रोक ले अब तो आकर अरे बेवफ़ा
बढ़ रहे हैं कदम ख़ुदकुशी के लिए
इन अंधेरों में रहते हुए भी सदा
संजय जीता रहा रौशनी के लिए
(कवि पत्रकार एवम चित्रकार करतार नगर दिल्ली, भारत! )